Thursday, 12 July 2012

पाँव से ना कुचल देना ....बड़े होकर छाया देंगे,,,(पर्यावरण दिवस पर जो हर दिन होना चाहिए )


पाँव से ना कुचल देना ....बड़े होकर छाया देंगे,,,(पर्यावरण दिवस पर जो हर दिन होना चाहिए )

by Suman Mishra on Wednesday, 6 June 2012 at 00:32 ·



पाँव से ना कुचल  देना, बडे होकर छाया देंगे,,,
देख लो छोटी सी छाया , बस अभी आभास देंगे
धुप खाकर बढ़ रहे हैं, त्रस्त जल की प्यास लेकर
बादलों का क्या भरोसा, धरा से बस आस लेंगे

कट रहा जीवन हरेक दिन , फट रहा सीना धरा का
है धराशायी सा जीवन , लोग अब कैसे खिलेंगे
बीती रातें गर्म सी थीं, दिन में बस आग बरसी
जल रहा है अब ये जीवन , मौत अब परिहास सी ही




कितनी शहतीरें बनेगी , कितने दरवाजे औ खिड़की
लोग इसमें जी उठेंगे , ताप हो या कठिन सर्दी
कितने मयखानों की छत पे लगा टेबल जाम छलके
कट गया स्तम्भ अब ये झूमता था हो सवेरा

गिर गया ये नीड़ जिसका, जतनो से उसने सजाया
भरती थी कितनी उड़ाने, चुने तिनके घर बनाया
सहती तूफानों के झोंके , पंख पांखी सब गिराए
येही तो था दिल हमारा , बन गया शमशान साया



कौन कहता है की यादें बस जुडी है हम सभी से
पेड़ पालव और पांखी क्या नहीं इस श्रृंखला से ?
याद की बातों का मंजर मौन धर ये विहग सोचे
वो जो तरु था अब गिरा है दूसरा कब खडा होगा

काटता इंसान इनको क्यों नहीं वो जान पाता
सांस की सीमा इन्ही से , सरहदों का इनसे नाता
इनकी सुरभित स्वच्छ वायु बादलों को खींच लाती
बारिशों की बूँद इनके रंग में रंग बरस जाती



सूनी नजरें ढूढती हैं फिर वही एक आशियाना
कुछ तो अपनी फिर मशक्कत ,फिर भरेगा ये वीराना
कितने जीवन की बलि एक पेड़ की खातिर हुयी है
आरियाँ जब  तक चलेंगी , खाली सड़कों पर ठिकाना



लोग कहते हैं ज़रा तुम पाँव रखना  अब संभल के
जीव ना मर जाए छोटा एक ज़रा अनदेखी करके

एक हरा नन्हा सा पौधा , तुम बचाकर ये ना कुचले
कल बड़ा होकर  प्रकृत के नियमों को गर ज़रा समझे
येही आश्रय है हमारा हम पथिक इस धरातल के

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