लो एक दिवस फिर बीत गया इस मन की आपा धापी में
by Suman Mishra on Thursday, 21 June 2012 at 00:45 ·
लो एक दिवस फिर बीत गया
इस मन की आपा धापी में
अब स्वप्नों में श्रृंगार करू ,
लौ बुझी नहीं है बाती में
रोशनी प्रखर मन में घूर्णित
हर पल का सार समायोजित
कल आँखों के खुलते ही मन
भागेगा मिलने कर विस्मित
खट्टे मीठे तीखे अनुभव ,
मन खुश है कुछ अपना सा लगा
इस लाली के रहस्य ने ही
इस मन का राज छुपा रखा
हर रोज मैं इससे मिलता हूँ
कुछ दृश्य की बाबत जान सकूं
पर प्रेम की परिभाषा ऐसी
सम्मोहन मन ना भान सकू
कोई स्पर्श नहीं फिर भी
कुछ गहन बात इस प्रेम में है
जाने कितने कारण इसके
अनबूझ पहेली लगता है
हर बार नया दिन आता है
पर हर दिन सूरज एक सा ही
फिर प्रेम की बात अधूरी क्यों
तरकीब चाँद दे जाता है
मानव मन चंचल होता है
हर तरफ सुकून की बातें हैं
रोयें रोयें में हुक्म भरा
तामील भरी हर रातें हों
अफ़सोस सुकूनी सरहद पर
आपा धापो उसकी मर्जी
हम चैन से सोकर उठे अभी
वो करवट ले कर हंसता है ,,,,(इश्वर का लेखा )
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