धधक रही है शिखा लपट की ..फैलेगी हर दिशा दिशा में
by Suman Mishra on Sunday, 3 June 2012 at 15:07 ·
बाँध शिखा दृढ जवलित अग्नि सी,
बन चाणक्य कसम दोहराओ,
कहाँ छुपे हो निकलो बाहर,
ले मशाल आवाज उठाओ,
गिरी दामिनी अम्बर से जो ,
फटेगा सीना धरती का ही
एक तिलक गर भाल लगेगा,
सौ दुश्मन को राह दिखाओ
परत परत धरती खुलती है,
माँ का आचल फटता जैसे ,
अग्नि रश्मि ज्यों आग बरसती,
अम्बर तक बरपा है इसपे
काल गरल भर चला मस्त हो,
रोक उसे अब त्वरित वेग से
दुष्कर हो पथ उसका निष्फल ,
रुके वही जो चला जहां से ,
ये पग छाले नहीं रुकेंगे ,
ढूंढ ही लेंगे मरीचिका को
कहाँ भ्रमित मन मात खा रहा,
कहाँ सामने लहर तरल सा
ध्वस्त कर अरि की ध्वजा को
मान मर्दन त्रिणित कर दे
जो भी नजरें दृष्टि बाधक
पल में ही ब्योधान कर दे
माना की हुंकार होगी
हर तरफ ललकार होगी
शंख बजता द्रोण का या
पार्थ की टंकार होगी
बाँध कर ये जिगर मन पर
दुष्ट को इतिहास कर दे
रक्त वमनित धरा पर ये
दमन कर अभिमान भर ले
No comments:
Post a Comment