Thursday, 12 July 2012

निगांहों की गर्मी से पिघली बरफ़ है, मगर आंसू हैं की जमे जा रहे हैं..


निगांहों की गर्मी से पिघली बरफ़ है, मगर आंसू हैं की जमे जा रहे हैं..

by Suman Mishra on Friday, 8 June 2012 at 00:46 ·


निगाहों की गर्मी से पिघली बरफ है

मगर आंसू हैं की जमे जा रहे हैं

बहुत बार मैंने दिया रास्ता है
 
निगाहों से बच कर छुपे जा रहे हैं


ये खुद्दार से हैं , नहीं आते बाहर ,
ज़रा रोशनी से हैं डरते कभी ये
अगर एक हल्की सी शह गर मिले तो
छलक कर भी अटकेंगे कोरो पे जाके



(चलो इन्हें राहत देते हैं ,,,सपनो में बिना आहट के सैर करते हैं )

सपनो की  चादर लपेटे चल पडा मन एक सफ़र में
मैं धराशायी हूँ पथ पे  , पाँव मन का  एक डगर में
रोकता हूँ साथ में रह, नीद में कुछ बात तो कर
वो नहीं सुनता है मेरी, आँख में बस स्वप्न झूले


झील में पानी नहीं है, डूबना है इसमें निश्चित
जंग है आँखों से मेरी , तैरता मन कुछ विछिपित ,
खोजता सा पल जो खोया , आँख के पीछे नगर में
मन पथिक सा चल पडा है , एक अनजाने डगर में



मोहपाशों से बंधी वो , छु रही हूँ कुसुम शाखा
येही तो वो जिसपे झूले थे कभी हम कर के तमाशा
आज वो कमनीय सी है, कुछ लचक से भर गयी है
महकते फूलों की डाली , स्वप्न की देहरी खड़ी है


नीद से चलके हूँ पहुँची मन के बागानों के देहरी

पार ना मैं जा सकूंगी , बस येही कुछ देर ठहरी
मिल के उसकी याद से मैं चल पडूँगी फिर से पीछे
आँख को मत खोल देना गिर पड़ेंगे स्वप्न नीचे





शाम से  दीवार गुमसुम कह रही है दास्ताने
हर तरफ नजरें बिछीं हैं आहटों सी देती ताने
मन में है एक आस जो दीवार के अक्सों में दिखता
छुप नहीं सकती व्यथा ये , मैं जो सोचूँ सब ये जाने

ये नयन भी बोल देंगे , मौन को भी तोड़ देंगे
बर्फ के मानिंद बहकर , अश्रु मन भर तोल देंगे
कब तलक मायूस ये मन, आँख से ही सब सहेगा
अब नहीं बस स्वर कहेंगे , हंसके सब दुःख झेल लेगा

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