Thursday, 12 July 2012

निगाहों के सामने से वो चला गया , ठहरा हुआ मन मेरा वो साथ ले गया


निगाहों के सामने से वो चला गया , ठहरा हुआ मन मेरा वो साथ ले गया

by Suman Mishra on Saturday, 30 June 2012 at 01:19 ·



ऐसा ही होता है कभी "मन" नयन से बोला
तुम रुके हो यहाँ पर देखो ये मैं चला
पहुंचूगा उसके पास कितनी दूरिया तो क्या
आँखों को मूद कर तू अपने स्वप्न को सजा


कहने की बात और है आँखों के रास्ते
जो खुद ही चलके इनमे मुसाफिर यहाँ भटके
कितनी अधूरी चाह इनमे है छुपी हुयी
वो कौन सा जादू जो अश्कों से छलक पडे

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चंचल मन विहग विहग
पंख जैसे तितर बितर
उड़ता है इधर उधर
नयन से संचित हो सरल


रूप राशि विलग विलग
एक ही स्थल पे ठहर
जांचता ये कौन सुघड़
मन का मयूर विकल




 नयन और मन की बात 
एक भाव एक जात
अंखियन से दूर दूर
जाय के मन में समात

भेजत सन्देश प्रहर
विरह नयन बिलख कहर
आवत ना जात कहूं
प्रियतम से प्रीत जहर,,,,,,( प्रीत कैसी विष के बिना , मीरा ना भायी)

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