एक शमा सी जलती बुझती काया है या ये है नारी है,,,,(विशेष वर्ग - मजबूरी के हालत से खुद का सौदा करने वाली -दुखद )
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आज ये विषय चुना है मैंने जो समाज में एक गलत तस्वीर के रूप में उभरती है नारी की प्रतिमा,,,,किन्ही मजबूरियों के तेहत
या फिर अपनी स्वछंदता में इजाफा करने के लिए,,,
जीवन तो सामान्य रहा था, उसका भी अनुमान रहा था
जीवन में प्रकाश की सीढ़ी ,चढ़ने का अरमान रहा था
बड़ी उलझने नाम था नारी, लाज शर्म से मान रखा था
अब जीवन सड़कों की तह पर, सबका कुछ एहसान रहा था
सबकी नज़रे वेधन छमता, आंक रही थी मर्म था पैसा
एक ह्रदय जो निष्क्रिय है अब, एक हृदय तुलने के जैसा
क्या आंसू में नयन छिपा है , मन के भीतर मनन छुपा है
बूँद बूँद निचुड़ेगी काया , रक्त से क्या पर धर्म छिपा है..
नहीं सोचती आगे की वो , अपना जीवन कब जीती है
हर दिन नया जनम लेकर वो , सबका पेट वो खुद भरती है
एक एक पग धरती धंसती , भावों को अंतस में छुपाये
मिलती है वो जब आदम से , खुद की एक परत दिखलाए
पहचाना पथ , सड़क वही है , लोग मगर बस अनजाने है
नकली मुस्कानों को ओढे , हर दिन दोस्त सयाने से हैं,
हर पल अस्मत और ये जीवन, खुद की एक पहचान कठिन है
नारी ही क्यों बंधी विधा से, पुरुष का हर अरमान वरण है
मगर वही कहीं एक अलग वर्ग ....जिसे फैशन परस्त और आधुनिक....वर्ग माना जाता है,,,
फ़िल्मी दुनिया और प्रबुध्ह वर्ग ,,जिसका जीवन स्वतंत्र और स्वछन्द,,,,मगर प्रश्न वही है ??????
हर तरफ रंगीनियों की रुत मगर एहसास भी है
जिन्दगी सब कुछ नहीं पर ज़रा बदहवास सी है
शाम से ही जाम ,डिस्को, बेसुरे से साज सी है
रोज बाहों में ही गुजरी, एक अंधरी रात सी है
हर तरफ नजरें हैं फिरती क्या गजब की रोशनी है
वो था उसका पहले वादा आज दूसरा हम नशी हैं
क्या मिलेगा किश्त देकर , मूल हर दिन जिन्दगी है
चलो बीता चाँद जो था , पर आज भी सूरज वही है
ये नहीं समझेंगे मर्यादा का कोई आचरण भी
खुली सी इन वादियों में लाज का ये अपहरण भी
क्या बचा है क्या है रक्खा कुछ नहीं बस नाम ही है
देखते हैं रोज इनको हर सड़क और हर दिशा में
या फिर अपनी स्वछंदता में इजाफा करने के लिए,,,
जीवन तो सामान्य रहा था, उसका भी अनुमान रहा था
जीवन में प्रकाश की सीढ़ी ,चढ़ने का अरमान रहा था
बड़ी उलझने नाम था नारी, लाज शर्म से मान रखा था
अब जीवन सड़कों की तह पर, सबका कुछ एहसान रहा था
सबकी नज़रे वेधन छमता, आंक रही थी मर्म था पैसा
एक ह्रदय जो निष्क्रिय है अब, एक हृदय तुलने के जैसा
क्या आंसू में नयन छिपा है , मन के भीतर मनन छुपा है
बूँद बूँद निचुड़ेगी काया , रक्त से क्या पर धर्म छिपा है..
नहीं सोचती आगे की वो , अपना जीवन कब जीती है
हर दिन नया जनम लेकर वो , सबका पेट वो खुद भरती है
एक एक पग धरती धंसती , भावों को अंतस में छुपाये
मिलती है वो जब आदम से , खुद की एक परत दिखलाए
पहचाना पथ , सड़क वही है , लोग मगर बस अनजाने है
नकली मुस्कानों को ओढे , हर दिन दोस्त सयाने से हैं,
हर पल अस्मत और ये जीवन, खुद की एक पहचान कठिन है
नारी ही क्यों बंधी विधा से, पुरुष का हर अरमान वरण है
मगर वही कहीं एक अलग वर्ग ....जिसे फैशन परस्त और आधुनिक....वर्ग माना जाता है,,,
फ़िल्मी दुनिया और प्रबुध्ह वर्ग ,,जिसका जीवन स्वतंत्र और स्वछन्द,,,,मगर प्रश्न वही है ??????
हर तरफ रंगीनियों की रुत मगर एहसास भी है
जिन्दगी सब कुछ नहीं पर ज़रा बदहवास सी है
शाम से ही जाम ,डिस्को, बेसुरे से साज सी है
रोज बाहों में ही गुजरी, एक अंधरी रात सी है
हर तरफ नजरें हैं फिरती क्या गजब की रोशनी है
वो था उसका पहले वादा आज दूसरा हम नशी हैं
क्या मिलेगा किश्त देकर , मूल हर दिन जिन्दगी है
चलो बीता चाँद जो था , पर आज भी सूरज वही है
ये नहीं समझेंगे मर्यादा का कोई आचरण भी
खुली सी इन वादियों में लाज का ये अपहरण भी
क्या बचा है क्या है रक्खा कुछ नहीं बस नाम ही है
देखते हैं रोज इनको हर सड़क और हर दिशा में
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