Thursday, 12 July 2012

डालियों से झूलने का मन +++मन अभी भी वही ठहरा


 डालियों से झूलने का मन +++मन अभी भी वही ठहरा

by Suman Mishra on Monday, 2 July 2012 at 23:10 ·



पीछे मुड़कर देखते हैं ,मन वही पे जा के ठहरा

मैं बुलाऊँ पास उसको , ना सुने जिद्दी या बहरा


झूलता मन डालियों से , उड़ चला वो पांखियों सा
मार कर पेंगे उड़ा वो , पंखुरी सा विखरा बिखरा

छोड़ कर सपनो का बिस्तर , धरा पर पैरों का रखना
ऊंचे नीचे रास्तों पर, क़दमों का गिर गिर के उठना
बचपने की तंग गलियाँ , यहाँ से बस वहाँ फिरना
पक्के आमो की वो बगिया, कच्चे बेरों पर झगड़ना





ताल के पानी की थर थर , बत्तखों के पंख फ़र फ़र
मैं किनारे दर्शकों सी, घंटों उनके संग में रहना
मन नहीं भरता था फिर भी , उनका ही सपने में दिखना
ये मेरे बचपन की बातें , मेरी भी ये ! तुम ना कहना

पाँव पानी की हिलोरें , मछलियों की वो किलोलें
मस्त सा मन झूमता था, हाथ तंग पर मस्त मौला
चंद सिक्के खनखने से, नोट ना ले वो था मैला
एक अंदाजे बया सा, चल कही ले पकड़ थैला



आज वो सब मेरी यादे ,तैरती हैं स्वप्न में ही
आँखों को बस बंद करके ,दूर बचपन मैं अकेला
कितने दृश्यों को मैं सोचूँ , आँख भरकर अश्रु पोछूं
आज कितनी दूर है वो , हर तरफ मसरूफ खेला


आज वो बातें पुरानी, याद में दादी ना नानी
फिर भी उनकी हर कहानी , याद मुझको है जबानी
तुम कहो तो बोल दूं मैं राज दिल के खोल दूं मैं
मैं नहीं बदली ज़रा सी, तुम भी ना बदलो ज़रा सा,,,,

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