नाकाम इश्क.....यादों की धरोहर
नाकाम इश्क यादों की धरोहर ,
छुपा हुआ कुछ तीर नज़र का,
हर पल जैसे रंग बदलता
इन्द्र धनुष हो बारह रंग का
कोई चाभी नही है इसकी
जब मन हो बंद हो जाते हैं
एक बार जो मन की दस्तक
खुद ताले यूँ खुल जाते है
हर लम्हा उसको जीता हूँ
मौन से मैं बाते करता हूँ
कुछ यादों के पंख सुनहले
जोड़ जोड़ कर उड़ लेता हूँ
एक सुरंग और मैं तनहा
दुनिया भी तनहा लगती है
धड धड करती रेल की पटरी
जहां पे कल थी, वही पडी है
मैं भी इनके जैसा इस पल
उस पल यहाँ वहाँ जा आया
आखें ,मन सब कही अलग थे
पर मैं येही या मेरा साया
इन यादों का येही बसेरा
लिपटी हैं ये बेले बनकर
मैं स्थिर सा अचल खडा हूँ
याद की बारिश मन के तीरे
एक धरोहर हैं जन्मों की
मिलना और विछ्ड़ना जारी
नए रूप पर याद वही है
हर जन्मों की एक कहानी
मत सोचो ये लोग हैं कहते
क्या साँसों को रोक सकूं मैं
सांस जो मेरी शब्द बने तो
पूरी कहानी सुन लेना तुम
एक झोंके से उड़ा ले गया
दूर दूर तक पता नही है
तरु के तट पर बैठ पथिक वो
खुद को खुद में ढूढ़ रहा है
☆★☆★☆
इन यादों का येही बसेरा
लिपटी हैं ये बेले बनकर
मैं स्थिर सा अचल खडा हूँ
याद की बारिश मन के तीरे
वाऽह…!
आदरणीया सुमन रेणु जी
बहुत प्रवाहमयी है आपकी कविता
बहुत सुंदर !
हृदय से साधुवाद...
आपके ब्लॉग की कुछ अन्य रचनाएं भी पढ़ीं , जो प्रभावित करती हैं...
मंगलकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार