निशा निमंत्रण.....
by Suman Mishra on Monday, 2 July 2012 at 01:50 ·
अभिमंत्रित स्वर का प्रछालन
सम्मोहन की चादर लिपटी
कुछ शबनम के कण टाँके है
खुशबू यूँ तन पे बिखरी है
मन विरक्ति से दूर कहीं पर
खोज रहा है नेह चिरंतन
दिवस बीत कर विदा ले रहा
दे आया मन निशा निमंत्रण
सपनो के उस चाँद से पूछो
आज अधूरा क्यों वो आया
रख आया आधा तन अपना
गिरवी में क्या अपना साया
फूलों के दल श्वेत हो गए
रंगों से परहेज हो गए
निशा अँधेरी गहरी होकर
अंधियारों में भेद खो गए
चलो आज मैं सैर कराऊँ
नए स्वरों में सुर को सजाऊ
मेरे गीतों के शब्दों में
उसके चेहरे को ले आऊँ
अनजाने जो बात कही थी
सच की परतों से लिपटी थी
तम ने घेरे खूब कसे थे
मगर चांदनी के डोरे थे
सूर्या रश्मि अब धरा से मिलकर
दोनों प्रहर बनाकर रस्ता
ये प्रकिरती के नियम अनूठे
छितिज़ धरा से जब तब मिलता
दे कर जाता वो हार प्यार के
पहनाने वो इन्द्र धनुष से
बारिश की बूदों में सजकर
निशा निमंत्रण दिवा स्वप्न सा....
No comments:
Post a Comment