Thursday, 12 July 2012

एहसानों का दौर है ये , कुछ बात करो अरमानो की


एहसानों का दौर है ये , कुछ बात करो अरमानो की

by Suman Mishra on Wednesday, 13 June 2012 at 11:08 ·


एहसानों का दौर है ये , कुछ बात करो अरमानो की
जिसमे मेरे सपने अपने, और तुम अपने नजरानो की,
कहते हैं लोग तुम ना होते ,फिर मेरा क्या होता बोलो
मैंने खुद को आगे रखा , अपनी शेखी पहचानो की


वो नाखुदा दिखा ना तब ? जब पैरों में छाले फूटे थे
अब आये हैं तोहफे लेकर , बन मिसाल मेहरबानो की
वो सरहद पर  हम अपने घर पर, दिल में खौफ भरा मेरे
एहसान देश पे उसका है , मेरा घर के दरबानो पर



सर ऊंचा कर हम चलते हैं, संयम वाले तो हम भी हैं
जब रक्त बहा उन वीरों का, कुछ बात ज़रा हम्मे भी है
बस मौक़ा आने दो ,घूघट के पट खुल जायेंगे
ये तीर नज़र ज्वाला बनकर बरसेगी शत्रु पर तीरों सी,


मत कह देना अबला जैसी, ये रक्त हमारा लाल ही है ,
अरि का मस्तक झुक जाएगा, इस देश की शान प्रणाम ही है
कब तक वो वार करेगा यूँ, अंदरूनी ताकत सोएगी
अब जाग रहा है मन पौरुष , जीवन सस्ता बस आन ही है 





कितने भी देश विदेशी से हम लगें मगर ये ह्रदय अलग
ये पाँव लगे हैं धरती से, इसकी गरिमा मन मस्तक पर
ये स्वप्न नहीं जो टूट गया , ये अपनी एक हकीकत है
हर काम अलग सबसे पहले ,मन प्राण से इसकी इबादत है

क़दमों को ठोकर लग जाए मत रुकना देने सहारे को
हम खुद ही से उठ जायेंगे , आगे समतल या पहाड़ों पे
बस आने दो उस समय को तुम जो शाब्दिक रेखा खींची है
अछरशः सत्य कहा मैंने , हर हिन्दुस्तानी वालों से

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