Saturday, 5 November 2011

अभी अभी एक लम्हा गुजरा


अभी अभी एक लम्हा गुजरा

by Suman Mishra on Sunday, 06 November 2011 at 01:08

अभी अभी एक लम्हा गुजरा ,जाने कितने रंग उकेरे,(आरम्भ ..इस भाषा से//बाकी सब श्याम रंग)
एक कहे भई श्याम की राधा, एक रुक्मिणी के पग फेरे,
एक देत मीरा को दुहाई , एक गोपियन के रंग बिखेरे,
कोऊ कहे सब श्यामल श्यामल, जित देखो तित श्याम घनेरे

प्रीत की रीती ना जानत कोऊ, एक रंग आंवत, दूजो छावत,
श्याम की राधा सब जग जानत, काहे प्रीती को झूठ बतावत,
मधुर अधर लय बांसुरी बाजत, स्वर लहरी पै नाच नचावत,
वाकी मर्जी राधा को संग, अगले ही छन कोऊ और रिझावत,

नेह लगाय लियो कान्हा से, मुरली मनोहर नाम  बतावत,
द्वार खडे है सुदामा को गेह भरे भरे अश्रु बहावत,
प्रेम की मदिरा श्याम नैन में, जान सको कछु भेद जनावत,
जगत में रूप को राशी कहो जन, ऐसन रूप तो नाही बनावत

No comments:

Post a Comment