Monday, 14 November 2011

कभी कभी बादल कुछ जल्दी ही बरस जाते हैं

कभी कभी बादल कुछ जल्दी ही बरस जाते हैं.

by Suman Mishra on Sunday, 13 November 2011 at 21:14

कभी कभी मन की तल्खियां कुछ शोर सी मचाती हैं,
उसकी नाराजगी मन पे असर सा कर जाती हैं,
जाने कितने वादों की दीवार टूट जाती यहाँ,
आज नहीं कहेंगे कुछ मन को समझाती हैं.

क्यों उसकी याद मैं मन डूब डूब जाता है,
क्यों उससे दूर दूर रहके पास आता है,
क्यों उसका नाम यहाँ मन को भरमाता है,
कहीं रहो, कुछ भी करो, बस उसे ही बुलाता है,

बादलों की परत चढी, आसमान छिपा हुआ,
चाँद और तारों का घर भी गुमनाम हुआ,
कहाँ है वो कैसा है, मिलना एहसान हुआ,
जोर से पुकारूं उसे , दिल का फरमान हुआ,

अब तो इन बादलों से राह बनाना होगा,
इनके ही रास्ते उस देश में जाना होगा,
किसीने कहा था अपनी तल्खियों को ख़तम कर लूं,
कभी कभी बादल कुछ जल्दी ही बरस जाते हैं,,,,

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