कृष्ण की बांकी चितवन न्यारी ,राधे हार गयी मन को
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कृष्ण की बांकी चितवन न्यारी , राधे हार गयी मन को,
स्वर्ण रंग अब श्याम भयो है, राधे भूल गयी तन को ,
नाचत झूमत ,गावत ,निकसत भई बावरी मानत ना,
सबहिन को अब श्याम बतावत, राधे एक सुहावत ना.
हे कान्हा अब तोरी बांसुरी , जबसे सुनी मन भ्रमित भयो,
तृष्णा भरी है मन में मेरे, एकौ छन मन विछरत ना,
देत दिलासा विहरत इत-उत, नैन थकत अब सोवत ना,
एकै चितवन धन्य भयो मन, मन यो पहेली बूझत ना.
कृपा दृष्टि औ मन है साछी , प्रेम सफल भयो जीवन को,
कृष्ण की बंसी रहेयो पुकारत हरदम नाम यो राधे को,
आवत जात सबैं में बस्यो है श्याम ही श्याम निहारत है,
नाद नाद अब शंख चक्र धरी , राधे कृष्ण विराजत है,,,
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