Thursday, 24 November 2011

वो हरसिंगार का पेड़, जो आज भी वहीं है

वो हरसिंगार का पेड़, जो आज भी वहीं है 

by Suman Mishra on Thursday, 24 November 2011 at 16:26

तुम्हारे आँगन मैं खडा वो हरसिंगार ,
मुक्त मन से मुस्कराया उम्र भर,
मन का कोना तरबतर खुशबू से था ,
उसने ही मुझको जगाया उम्र भर,,

नीद लगते साथ ही दिखता था रोज,
उसकी  डाली लिपटी मुझसे लता सी,
स्वप्न के मानिंद कुछ स्वप्निल सी थी,
इसी सपने ने सताया उम्र भर,

रात की खुमारियों थी, गिर पडे  कुछ  धरा पर,
पल मैं ही हो गयी पागल, खुशबू से मन भरा यूँ,
गगन से  वो जब मिली थी, महक कर वो हंसी थी,
फूल के रंग रंगी जैसे, इन्द्रधनुषी बनी वो.

कुछ चुने मैंने भी इनको, पुष्प ये पारिजात के,
मन के आँगन में जो मूरत, हैं चढ़े विश्वास से,
ये नहीं हैं फूल ही बस, जनम संवाहक से हैं,
भीनी खुशबू मन बसी है, है धरोहर मन की ये,

क्या लिखूं इस पर ये कविता,
इसको भर कर अंजुरी,
बहकता मन,महक से यूँ,
मन लता की मंजरी,
ओस की बूदों मैं लिपटी
है नमी खुशबू भरी ,
देव के चरणों मैं अर्पित
पुष्प श्रध्हा हे हरी....

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