Tuesday, 22 November 2011

धरोहर

कुछ बातों की याद धरोहर ,
कुछ बातों के साथ धरोहर,
कुछ रक्खी तालों के अन्दर,
कुछ मन की है बात धरोहर 
कुछ शब्दों के तीर चले थे,आर पार गंभीर चले थे,
जीत हार परिणाम युगों का,
बनता है इतिहास धरोहर,

कहीं दीप की लौ फीकी सी,
कहीं ज्योति की लडियां लटकी
कहीं वो भूखा सोया कबसे,
कभी बनी अपमान धरोहर,

कितने किस्से गठरी बनते,
पन्नो पे है धूल जमी सी,
अब तो जाने क्या क्या बिकता,
वेद और पुराण धरोहर .
 

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