दूसरों के हाथो से ख़त क्यों मेरा मुझ तक पहुंचे ?
by Suman Mishra on Monday, 28 November 2011 at 16:19
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दूसरों के हाथों से ख़त क्यों मेरा मुझ तक पहुंचे
पहरेदारी मैं लगे हैं पेड़ के हर पात इस पर,
खुशबू फूलों की है इसमें , कोपलों सी नर्म चाहत,
उनका हर पैगाम हवा खुद ही उड़ा के लाये मुझतक,
रोशनी अंजाम देती शब्द दिखते मोतियों से,
एक पुरवाई ही काफी,चलती है ख़त पहुँचने के,
मेरी यादों में जो बीते पल ,वो पल सब लिखे थे,
क्यों दिया उस दूसरे के हाथ जो मुझे प्रिय थे ,
एक रुसवाई है ये मेरे तरन्नुम और के हों,
ये तो गुस्ताखी हुयी उसकी अगर मैं पूछ लूं तो ?
एक जीवन जिसमें उसका ही बसर है,
दूरिया भरता हुआ, उसका ये ख़त मुझको नज़र है.
सुर्ख स्याही ये नहीं ये फूल के रंग से सजे थे,
हवा के मानिंद से ये रास्ते पहचान लेंगे,
उनका होकर भी ये सदमा फिर है मुझको अजीज
पढ़ना चाहूँ शब्द को पर दृश्य बन जाए शदीद
उनके ख़त को लगा सीने , धड़कने और नयन संगम
एक की आवाज प्रतिपल, एक गति से सजल प्रतिपल,
इन हवाओं की नमी से भीगता सा ख़त अगर तो,
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