Monday, 7 November 2011

प्यार और नफरत दोनों ही जरूरी है.....


 


कोई काँटों से खेला है, कोई फूलों की खुशबू से
मगर ये प्यार का मतलब क्यों नफरत शुरू करता,
ये अंधा प्रेम आँखें बंद, मगर सारा जहां पागल,
जब आँखें बंद हो जिसकी, क्यों देते जान सब इस पर ,

कली बागों मैं खिलती हैं, टंके हैं उसके बालों पर,
कभी पैरों  के नीचे हैं कुचलते दिल बनाकर वो,
यहाँ नुक्सान किसका दिल का दरिया सूखता क्यं है,
येही तो बात नफरत की, मुहब्बत पे ही काबिज है.



बड़ी खामोश नज़रों से , थी देखी राह उसकी जब,
ना आया वो बुलाने पर, लिखी तहरीर उस ख़त में,
कोई शिकवा नहीं करना, मिलन ये हो नहीं सकता,
मोहब्बत ना सही अपनी, मगर तुम दोस्त ना खोना,

येही दफना दो बातों को, शुरू हो नयी तहरीरें,
मगर ये छल कहाँ रखूँ, नफरतों के बगीचे मैं ?
उगेंगे पेड़ अब इनसे , फ़ैल कर बेल लिपटेगी
बड़ी प्यारी सी एक दास्ताँ मोहब्बत की सुनाएगी,


कहीं तो अंत हो इसका, ना नफरत प्यार का हिस्सा,
ये सौदा कर मोहब्बत से , वफ़ा से मिल के कायम कर ,
बड़ी उम्मीद रिश्तों से, नहीं करना मना फिर तुम,
ये जज्बा सांस की थिरकन से जुड़ता जन्मों जन्मों से,

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