Friday, 18 November 2011

चन्दन महकी रात

चन्दन महकी रात 

by Suman Mishra on Saturday, 19 November 2011 at 12:58

चन्दन महकी रात भले ही समझ ना पायी ये वरना,
किसकी खुशबू थी नीदों मैं, ख्वाब हमारा बोले है ,
हल्की खुमारी आँखों मैं है, मन उपवन सा डोले है,
तैर रहा मन पंखुरी जैसा, थिरकन जल की हौले से.

जीवन की अभिलाषा है ये स्वप्न मयूर सा मन मैं रहे,
दिल को हाथों मैं रख ले हम, फूलो सा स्पर्श बसे,
चुन कर कुछ ख्वाब सुनहले, रूपहली रातें मध्हम,
चटक धुप  की आभा से कुछ . ठण्ड चांदनी शीतलतम,

मन की बात किसे मैं सुनाऊँ, नेत्र अधखुले सोये से,
कुछ हलके से कहा किसी ने , क्या तुमसे कुछ बोले ये,
हल्की सी मुस्कान है लब पर, शब्द कठिन कुछ तोले ये,
क्या कहना है पूछ रही हूँ, चुप है कबसे टोहे ले.

हरसिंगार की खुशबू से मन त्वरित हुआ अब सोच रहा,
किसकी यादों से महका मन, कौन स्वप्न मैं आके मिला,
नैन खोजते उसको हर पल, भ्रमण रहा मन भौरे सा,
बंद रात को कमल कुमुदिनी, खुशबू भर मन मन में बसा,

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