Thursday, 24 November 2011

रात भर जागे गुलाबों को लगा होगा

रात भर जागे गुलाबों को लगा होगा (श्री रविन्द्र जी द्वारा प्रेरित)

by Suman Mishra on Thursday, 24 November 2011 at 13:20

रात भर जागे गुलाबों को लगा होगा,
चाहतों का अर्थ कितना शबनमी निकला,
छोटी बूँदें बन गयी आकार मैं दुगुनी,(दर्पण का काम कर सकती हैं.)
लालिमा चेहरे की उसके शक्ल ले लेगी,

दर्द मैं चुपचाप मेरे पास आ बैठा
कुछ ग़मों की आँधियों से बिखरा बिखरा सा,
उसकी पंखुरियों को छुआ एक आह सी निकली,
यार तू तो एक मुकम्मल आदमी निकला.


कुछ नहीं तो आज इसकी रौं में बह जाएँ,
एक खुशबू हवा से हम खींच यूँ लायें,
रंगतों का क्या ये तो एहसास ले आये,
क्या गुलाबी, लाल रंग हम यूँ ही पी जाए,

उसका भी कुछ दर्द ही होगा, पास जो मेरे वो आया,
उसके काँटों मैं नरमी थी, साथ जो वो अपने लाया,
वैसे तो वो नाजुक दिल का पर मन की परिभाषा एक,
मैंने अपनी बात जो बांटी, एक हुयी वो एक ही बोल,

एक गुलाब जो जीवन की खिड़की से दिखता मुझको,

लहराता सा खुशबू देता, मन के वस्त्र से लिपटा जो,

कुछ कांटे जो चुभ जाते हैं, रंग में परिणित होकर भी,
आह नहीं बस प्यार की खुशबू, मन के द्वार से अर्पित हो,                          *****

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