ये स्वप्न भी ना ....

 
श्याम और बांसुरी की धुन का क्या ,वो तो बजेगी,
मधु मधुर सी तान सरगम गीत बन छलती रहेगी,
नूपुरों की ध्वनि त्वरित हो, यमुना के संग जा मिलेगी,
पत्र हों कदम्ब पात, लेखनी उस पे लिखेगी,

कल्पना श्रृगार की हो , रूप रस पराग लेकर,
अधर के रंग पंखुरी से, स्वप्न से उधार लेकर,
टूटना ना लिया वादा, स्वप्न मन विहार तो कर,
एक पल जो पारदर्शी , नेत्र खुले निहार पल भर.

कब रुका है स्वप्न का रेला वो तो बस छनिक सा है,
श्याम के रंग रंगी राधा, रंग नीला हरा क्या है,
प्रतिध्वनित ये बिम्ब जल मैं, छू दिया तो मिल सका ना,
येही स्वप्नों की व्यथा है ...उफ़ ये स्वप्न -स्वप्न भी ना