Sunday, 27 November 2011

उसकी यादों को बुलाना ही नहीं,


उसकी यादों को बुलाना ही नहीं,

by Suman Mishra on Sunday, 27 November 2011 at 21:24


देखना है शाम होती जिंदगी, हर सुबह पैगाम होती जिंदगी,
क्या करेंगे याद उसकी रख के यूँ,सोची समझी साजिशों सी जिंदगी,
हमने क्या सोचा हुआ कुछ और ही, उसकी सूरत याद हर पल जिन्दगी,
हमने पी आंसू गुजारी इस तरह, उसने हंस कर टाल दी यूँ जिंदगी.

क्या  करे बातें किसी की खाम-खां,इक नशे की है खुमारी जिंदगी,

बेचकर बाजार वापस आ गए, खाली हाथों से लुटी ये जिन्दगी .
सारा घर खुशियों की रहमत माँगता, वो पडा बीमार सा ये जिन्दगी.
फूल एक खिलता है मन में यूँ ही क्यों, बादलों से सींचती है जिंदगी.


एक पल की याद बस दस्तूर है, अच्छरों से जुड़ना जारी है यहाँ ,
क्या लिखा क्या सोचा था इस पंक्ति मैं ,बन गयी कविता सी है ये जिन्दगी
याद उसकी सालों तक आती रही, अब मिली निजात जैसे जिन्दगी,
चाँद तारे रोज आते हैं यहाँ, उसकी यादों को न बुलाना "ही" जिन्दगी .


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