Tuesday, 22 November 2011

अकेला चल के तो तू देख, काफिला आ रहा होगा,

अकेला चल के तो तू देख, काफिला आ रहा होगा,

by Suman Mishra on Wednesday, 23 November 2011 at 01:06

अकेला चल के तो तू देख , काफिला आ रहा होगा,
शहंशाहों की माफिक चल, काफिला आ रहा होगा,
नहीं रुकना  कहीं पर तुम , काफिला आ रहा होगा,
किसी रोडे से बचना तुम, काफिला आ रहा होगा.

कोई भी उम्र इसकी है, कोई वाक्यात शामिल कर,
लगेंगे पंख पैरों मैं, येही जज्बात शामिल कर,
लगेगे कुछ ही तब पीछे, पीछे दो आँख शामिल कर,
ज़रा  जल्दी हो मंजिल की, एक तर्ज़ुमात शामिल कर,

हुयी एक शाम सुबहों की, अन्धेरा फिर भी है जारी.
कहीं सूरज थका ना हो, कुछ तो एहसास शामिल कर,
कदम बढते रहें यूँ  ही, दिशा की बात शामिल कर,
कोई तो लक्छ्य जीवन का, एक कायनात शामिल कर,

येही जज्बा जो फैलेगा, कोई भी रुक नहीं सकता,
सभी आयेगे यूँ पीछे, कोई अब मुड़ नहीं सकता,
जो छोड़ा छूट जाने दे , नयी कुछ बात शामिल कर,
अकेला अब नहीं है तू, तारे और चाँद शामिल कर,                 

No comments:

Post a Comment