मुमकिन जहां गुजारना लम्हा भी नहीं था (श्री रविन्द्र जी द्वारा प्रेरित)
by Suman Mishra on Friday, 25 November 2011 at 12:30
by Suman Mishra on Friday, 25 November 2011 at 12:30
हम उस जगह भी उम्र को आये गुजार के ,
मुमकिन जहां गुजारना लम्हा भी नहीं था,
बातों का रोग यूँ भी जमाने ने पाल कर ,
बख्शा मुझे कुछ शब्द से कुछ तीर की तरह
उसने जो एक बार यूँ अपना कहा मुझे
इस जिन्दगी से माँगा कुछ पल उधार यूँ,
अब शाम का अन्धेरा हर रात चांदनी ,
पानी मैं अक्स उसका, पतझड़ बहार सी,
बस याद ने उसकी यहाँ सूरत तलाश ली,
उसने तमाम उम्र नकाब मैं ही काट ली,
कुछ शऊर होगा उनकी ह्या या कोई तहजीब
एक वफ़ा का जज्बा ही मेरे काम आ गया,
ये याद की बरसी हमेशा याद रहती है,
हरदम ख्याले रोशनी में तेल के माफिक,
हम जाने कितने पत्थरों मैं ढूढ़ते रहे
क्या मिल गया हवा से एक सलाम ही देके.
हमने बहुत सजदे किये उसकी तलाश मैं,
बस एक ही खुशबू ने मेरी सलामी ली,
अपनी बनाई सूरतों में हम फना हुए,
एहसास उनका मुझपे काबिज जहा रहा,
उड़ते हुए कुछ फूल के टुकडे मुझे मिले,
ख़्वाबों की दरगाहों पे हमने जो चढ़ाए .
मेरा वजूद जाने कहाँ गुम है हो रहा,
चेहरा तो उनके पास अपना भी नहीं था
हम उस जगह भी उम्र को आये गुजार के ,
मुमकिन जहां गुजारना लम्हा भी नहीं था,
बातों का रोग यूँ भी जमाने ने पाल कर ,
बख्शा मुझे कुछ शब्द से कुछ तीर की तरह
उसने जो एक बार यूँ अपना कहा मुझे
इस जिन्दगी से माँगा कुछ पल उधार यूँ,
अब शाम का अन्धेरा हर रात चांदनी ,
पानी मैं अक्स उसका, पतझड़ बहार सी,
बस याद ने उसकी यहाँ सूरत तलाश ली,
उसने तमाम उम्र नकाब मैं ही काट ली,
कुछ शऊर होगा उनकी ह्या या कोई तहजीब
एक वफ़ा का जज्बा ही मेरे काम आ गया,
ये याद की बरसी हमेशा याद रहती है,
हरदम ख्याले रोशनी में तेल के माफिक,
हम जाने कितने पत्थरों मैं ढूढ़ते रहे
क्या मिल गया हवा से एक सलाम ही देके.
हमने बहुत सजदे किये उसकी तलाश मैं,
बस एक ही खुशबू ने मेरी सलामी ली,
अपनी बनाई सूरतों में हम फना हुए,
एहसास उनका मुझपे काबिज जहा रहा,
उड़ते हुए कुछ फूल के टुकडे मुझे मिले,
ख़्वाबों की दरगाहों पे हमने जो चढ़ाए .
मेरा वजूद जाने कहाँ गुम है हो रहा,
चेहरा तो उनके पास अपना भी नहीं था
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ReplyDelete(उड़ते हुए कुछ फूल के टुकडे मुझे मिले,ख़्वाबों की दरगाहों पे हमने जो चढ़ाए.)
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क्या सुमन ! स्वयं की कविता में कहीं-कहीं तो घंटी बजा देती हो |
बहुत प्यारा लिखा__मार्मिक !
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