दिल की तिजारत
उसकी यादों मैं सुबह की शाम हुयी,
ऐसे खोये की उम्र तमाम हुयी,
तिजारतें सारी बंद यहाँ, लिखा था कुछ ,
समझ अपनी जरा सी यूँ बदनाम हुयी,
हमारी बात तो ऐसे की हम नहीं समझे,
...उसने समझा उसीकी शान हुयी,
करीबी मुख़्तसर की इतनी सी,
कोई खुशबू ही इंतजाम हुयी,
उसका आना और जाना क्या कहें ,
ऐसे ही बातें जो सरे-आम हुयी,
चलो मजलूम ही समझ कर समझो तो कभी,
मिली शिकश्त अगर दे दी,येही एहसान कई,
हम तो यूँ ही तराश बैठे हैं उसका चेहरा,
हमारा दिल कहीं और उसकी जान कहीं.
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