Tuesday, 2 August 2011

यादों की वीथिका

 
एक तिजोरी यादों की , कुछ झूठे सच्चे वादों की,
कुछ मन की तृप्ति यादों मैं, कुछ सुदर सपने आँखों मैं,
हम विषय चुने हम भाव गढ़ें, उन भावों मैं खुद भी बह लें,
इन यादों के दरिया से निकल , अब वर्तमान,फरियादों की,

किसकी बातें हैं सत्य कहो, क्या मन वंचित इससे होता,
होता है सत्य सामने फिर भी मन कहीं और फिरता,
हम भाग रहे विह्वल होकर, जाने क्या कौन नहीं है पता,
बस एक निशाँ ही छोड़ा था , उसको ही इंगित मन तिरता,

एक टूटे डाल के पत्ते सा, कभी इधर उड़ा,कभी उधर उड़ा,
बहती है हवा , लेकर जाती, जिस तरफ पथिक का मन ठहरा,
मन की तृष्णा , मन की यादें स्थायी जगह बन गयी एहीं,
हम त्रिश्नित मन को संचित कर, यादों की हवा मैं बहते हैं.

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