कान्हा
कोऊ कहे कारो कारो,कोऊ मतवारे कहे,
कोऊ माखन चोर, मुख dadhi लपटाए है,
कोऊ कहे मोहन और कोऊ को हो बनवारी,
कोई श्याम वर्ण छवि मन मैं समायो है,
श्याम को जो आभा नील भयो आज अम्बर है,
चाँद को है टीका, सूर्य तिलक लगायो है,
कान्हा से कन्हैया और गिरधारी बनके जो,
एके अंगुली पे सारो जगत थिरायो है,
काहे नाहीं आवत हो, मथुरा तो एहीं ठाड़ी,
यमुना का नीर श्याम रंग मैं समायो है,
मोहन की बांसुरी बजावत सारो ब्रिन्दजन,
छम छम नूपुर ध्वनि वृन्दाबन मैं फैलायों है,
आओ हे मुरारी तोहे करुण पुकार करू
ई तो एक गीत बस रचित बनायो है,
सारे बलिहारी ,सारे श्याम श्याम कहत थकें,
त्रस्त है मानव जाती,काहे भरमाय हो,,
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