Wednesday, 17 August 2011

भावनाओं का बसेरा


खूबसूरती जेहनी तौर पर शब्दों का चेहरे पर तिरना,
जाने क्यों इनको जगह चेहरे ही मिल जाती है,
दस बात सोचता है मन, दस दिशा घूमता है मन,
जाने किस किस से मिलता है, कई बार सोचता है मन,

...
सबकी बातें चेहरे पर एक जाल बनाती जाती हैं,
आवाजें उनकी शकल नहीं आकार सजाती जाती हैं,
कब दर्पित हुआ कभी ये, कब व्यथित रूप सा दिखता,
कुछ रूहानी यादों को, पलकों मैं सजा कर झुकता.

कुछ प्रश्न भी हैं लिक्खे से, कुछ हल भी छप सा जाता,
कुछ शांत सी मुद्रा होकर, पर मन को मथ है जाता,
कुछ बडे बवंडर फैले ,चेहरा उड़ता पंखों सा,,
मन के भावों को लेकर ये चेहरा कैनवास लगता.

अब जो भी हो ये पन्ना ,ये चेहरा इसका दर्पण,
बस नज़र की स्याही लिखती, किस्से इस मन दर्पण के,
पढते हैं जो अपने हैं, कुछ हेर-फेर भी करते,
चेहरे के भाव तिरोहित, गर वो जो अपना मिलता .


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