दो बूँद आंसू बस ढलक गए,
और शब्द चुभते हैं तीरों से,
कोई विषकन्या , देवदासी
और नगरवधू के डंके बजते हैं
तहरीरों पर तकदीर लिखा
नाम और कर्म की बात करें
ये शब्द और नारी जोड़ दिया,
और शब्द चुभते हैं तीरों से,
कोई विषकन्या , देवदासी
और नगरवधू के डंके बजते हैं
तहरीरों पर तकदीर लिखा
नाम और कर्म की बात करें
ये शब्द और नारी जोड़ दिया,
विधना से लड़ी इन नामों पर,
ऩा जीती तब तन जोड़ लिया.
इश्वर का रूप समझ ओ! मानव तू,
अर्धनारीश्वर रूप किस काज हुआ ,
फिर भी जग खूब विहँसता है
नारी रूपों ने इतिहास रचा ,
ये ह्रदय एक है दोनों मैं
पर पुरुष ह्रदय विहीन हुआ,
शक्ति रूप दुनिया को विदित यहाँ,अर्धनारीश्वर रूप किस काज हुआ ,
फिर भी जग खूब विहँसता है
नारी रूपों ने इतिहास रचा ,
ये ह्रदय एक है दोनों मैं
पर पुरुष ह्रदय विहीन हुआ,
विधि पे ही सबकुछ छोड़ दिया,
वो लड़े यहाँ, वो मरे यहाँ,
वो आंसू पीकर सोती है,
इन नामों के तमगे लेकर ,
पुतली है रक्त की जीती है
अब शब्द नहीं तुम प्रहार करो?
अब नारी का प्रतिकार करो?
ये उसकी मीमांसा होगी,
उससे ही जनम हर बार करो,
वो कैसे सब सह लेती है,
फिर मुस्काती दुःख सह सह कर,
उसको चिंता सबकी रहती,
पर उसकी चिंता एहसां कर कर,
क्यों पुरुष जगत निर्मम इतना
,क्यों शब्द कोशिका है खाली,
क्या स्त्री शब्द नहीं अच्छा ?
अब नारी का प्रतिकार करो?
ये उसकी मीमांसा होगी,
उससे ही जनम हर बार करो,
वो कैसे सब सह लेती है,
फिर मुस्काती दुःख सह सह कर,
उसको चिंता सबकी रहती,
पर उसकी चिंता एहसां कर कर,
क्यों पुरुष जगत निर्मम इतना
,क्यों शब्द कोशिका है खाली,
क्या स्त्री शब्द नहीं अच्छा ?
जो विष कन्या बन संग हो ली,
हे ! विश्व सुनो,चीत्कार सुनो,
तुम नारी की शक्ति जानो,
शिव शंकर हैं जब नील कंठ,
उनका ही विष संचित मानो,
अब गरल वमन ही होगा तब,
जब लोग लांछना ही देंगे,
सदियों से माँ की जनम भूमि
कैसे नारी श्रद्ध्नावित ना हो ????
शिव शंकर हैं जब नील कंठ,
उनका ही विष संचित मानो,
अब गरल वमन ही होगा तब,
जब लोग लांछना ही देंगे,
सदियों से माँ की जनम भूमि
कैसे नारी श्रद्ध्नावित ना हो ????
नारी की सशक्त वेदना ---जो प्रासंगिक है ---बहुत खूब ---सुंदर सोंच ---
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