Tuesday, 9 August 2011

बारिश की बूँद गुलाब पर

बारिशों के इस मौसम की क्या बात है,
बूँद की मार से ये भी यूँ झुक गया,
फिर भी आसरा दिया इसने बूदों को ही,
दिल से हारा बेचारा करे क्या भला

ना ये सूरज से डरता तनिक भी कहीं
और सर इसका उठता था मगरूरियत
अब तो बूदों की टप टप से झुकता है ये,
वो पवन के झकोरे भी कमजोर थे.

खुशबू बूदों मैं बस के हवा हो गयी,
आज खुशबू से महकी सबा हो गयी,
हमने हाथों से छूकर जो सीधा किया,
एक ताज़ी सी खुशबू बयां हो गयी,

आज बारिश की बूंदों का मंजर सुनो,
अरबी के पात भी दास्ताँ कह रहे,
उनपे ठहरी सी बूदें गवाही सी हैं ,
सुबह सूखी थी धरती ,अब दवा मिल गयी,,


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