जाने वो कौन सा है एक शख्श
वो एक शख्श जो मेरे बहुत करीब सा है,
मगर कुछ बात है की दूरियों की साजिश है,
वो एक फूल सजा है शाखों पे जैसे,
मगर उसको ज़रा सा छूने की खवाहिश है,
...पता है मुझको भी ये दूरियां नहीं मन की,
पता है दूर होके पास का अंदाज मुझे,
मगर कुछ बात है की सोचना भी पड़ता है,
वो शख्श कोई नहीं सोच का हमसाया है.
कहीं गुजरते हुए उसके जैसा कोई भी,
आज तक क्यों नहीं मुझको कहीं नज़र आया,
उसकी बातों के जाल हैं बहुत ही उलझे हुए से,
मैंने चाहा नहीं ना मन कभी सुलझा पाया,
एक बस फूल की खुशबू जो सबा मैं घुलती,
ऐसी खुशबू है की देख कर महसूस किया,
लोगों की भीड़ मैं वो जाने कहाँ गुम सुम है,
बहुत खोजा मगर वो साया मेरे साथ खोया,
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