Tuesday, 16 August 2011

अन्ना


कल राजघाट पर देखा था,कुछ शांत दिखे कुछ मौन दिखे,
चेहरे के भावो से परखा, कुछ चिंतित से धुन के पक्के,
मन का संयम सचित करते, कुछ दृढ शक्ति ग्रंथित करते,
साधारण सा एक झोला था, कुछ चमक दमक से दूर दिखे

बस शांति दूत की तरह सत्य और असत्य की एक कहानी ,
हर बच्चा अन्ना बोल रहा,हर युवा अन्ना की जुबानी.
थी भीड़ जुटी,आवाहन था, हर ब्यक्ति अन्ना का साछी था,
सबकी आँखें अन्ना की थीं, जो सत्य विजय पर अंकित थी,

कल देखा एक विचार दिखा,क्या गजब का आत्मविश्वास दिखा
ये सबल ,प्रबल चेहरे पे लिखा.आँखों मैं अजब प्रकाश दिखा,
विश्वास मुझे इस शक्ति का, करते हैं नमन इस भक्ति का,
सब छोड़ो अब बस देश धर्म, नव निर्मित से नव क्रांति जनम.

अब सबक मिला कुछ आत्मशक्ति, जो निहित हमारे अन्दर है,
बाहर लाओ और क्रांति करो, जन जन जिसका अब ध्योत्तक है,
कितनी सच्चाई चेहरे पर इनके अब साफ़ झलकती है,
मैं नमन करूँ ये महापुरुष, माँ भारती दर्पित होती है,

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