मीरा और श्याम
कोऊ कहे मीरा दुखियारी, सारी सुध बुध खोय चुकी है,,
कोऊ कहे है प्रेम दीवानी, श्याम विरह मन बोय चुकेयो है,
कोऊ कहे हे सुन री मीरा, क्यों तन्ने ऐसो रोग लग्यो है,
कोऊ कहे ई भई बावरी, श्याम श्याम अब श्याम भयो है.
कोऊ कहे जल बिन ज्यों मछरी, तलफत हिय दुःख रोय रह्यो है,
कोऊ कहे ई भ्रम की मारी , सारी मतिन अब सोय चुक्यो है,
कोऊ कहे अब के करनो है,मोतिन मन अब खोय चुक्यो है,
कोऊ कहे मीरा की गति अब , कस्तूरी सन जोह करयो है.
अब ये कैसे कहे श्याम तो मीरा के हैं हुए दीवाने,
हर पल साथ रहे हैं उसके, मीरा नाम श्याम के माने,
क्या करना है मति भ्रम होगा, बस ये भाषा प्रेम ही जाने,
प्रेम राम और कृष्ण मैं बसत़ा जो करता है वो हैं दीवाने ,
रोम रोम बस श्याम हुआ है, मीरा तो बस नाम ,नाम का,
एक बार प्रभु रूप तुम्हारा देख हुआ बस श्याम श्याम का,
आत्मसात है प्रेम की मला, सुध-बुध क्या ये प्रभु ही जाने,
विष प्याला भी अमृत जैसा, कृष्ण सुधा मीरा ये माने.
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