Sunday, 30 September 2012

मौन

मौन

by Suman Mishra on Saturday, 4 August 2012 at 10:43 ·



मौन पसरा चादरों पर देर तक सिलवट लिए
रोशनी के तीर खिड़की पे फलक से आ गिरे


मौन पर पैबंद डाले उठ गए दिन जानकार
चश्मे से बाहर है आँखें आज की तारीख में


गिनती के ये दिन "अलहदा" कुछ नहीं जो ख़ास हो
एक दिन का शोरगुल और मौन जीवन रास हो


एक दिन मसरूफियत और बाकी जो वो गमजदा
गम से तोड़ो नाते रिश्ते , तरकीब को अंजाम दो



क्या कहो कैसे हो तुम ? क्या रहगुजर कैसी रही
सुन सको तो मौन की दरगाह जैसी ही रही

लब्ज हैं या पंख हलके उड़ने की ताकत लिए
अनकहे के संग चल दूं मौन संग आदत लिए.

टूट जाने दो बिखर जाने दो उसे एक बार फिर
टूट कर वो फिर जुड़ेगा उसके गले का हार फिर

आइना खामोश फिर भी उसकी बद-गुमानियाँ
देखता है सच ही फिर भी कहता नहीं कुछ मौन से

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