स्वतंत्रता और स्वछंदता के मध्य का अंतर ही अद्यात्म है,,,,(श्री प्रतुल मिश्रा जी द्वारा विषय)
by Suman Mishra on Wednesday, 8 August 2012 at 00:50 ·
कभी धड़कन की हल्की सी
दबी आवाज के मानिंद
दबे पांवों से चलके पार कर ली
जिंदगी बस यूँ
बड़ी लम्बी थी सरहद की जमी
और नजरें थीं पुरजोर
मगर हमने भी कसमे वतन
खाई थी जुनूं में यूँ
कभी मन पिंजरे में रहकर
बचाता खुद को खुद से है
मगर दिल पंख ले आया
उड़ा वो ओर से फिर छोर
कहाँ पकडू, कहाँ बांधू
दिशाएँ बंदी गृह सी हैं
मगर अपनी वो एक दुनिया
अलग सी अलग मुझ में क्यूं ?
सूना है मन थिरकता है
मगर खाली हो गर सबसे
कोई तितली नुमायाँ हो
छोड़ कर रंग वो अपने
कहीं अध्यात्म शब्दों में
कहीं लम्बी सी तहरीरें
मैं हूँ स्वंतंत्र जमी मेरी
मगर स्वछन्द नहीं मैं क्यूं ???
No comments:
Post a Comment