मुझे फूलों से मत तोलो,मगर पत्थर भी मत मारो (असमय अंत का दर्द )
by Suman Mishra on Friday, 31 August 2012 at 00:41 ·
मैं एक जरिया हूँ शब्दों का
मुझे वो बात कहने दो
सत्य हैजो मगर कटु है
आइना साफ़ दिखने दो
मैं वो आवाज हूँ जिसको
हवा ने भी रोका रास्ता
कोई ध्वनि ही नहीं आयी
मेरी कोशिश है बाबस्ता
महकता था मैं गुलशन में
लाल सयाही ना बनना था
खिलने की बात सुनते ही
मुझे बरबस ही तोड़ा था
मगर अब मेरे आंसू से
लिखे जो शब्द मेरे हैं
रहा घुट घुट के जीवन भर
ख़तम पन्नो का रोड़ा है
ख़तम होकर हूँ मैं जन्मा
शब्द को कितना मारोगे
ये वो शय है की जीतोगे
मगर हिम्मत से हारोगे
शब्द में शब्द जुड़कर मैं
नयी आकृति तराशूंगा
मुझे ना देख पाओगे
मैं सबको खुद में लाऊँगा,
मेरी अंतिम इबादत ये ,
कोई भी अलग मत करना
मुझे मत फूल से आंको
मगर पत्थर भी मत कहना ,,,,,
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