काश आवाज उसकी ,,,,,,, जीवन अमूल्य है,,,इसे बचाओ ,,,मिटाओ नहीं
by Suman Mishra on Thursday, 9 August 2012 at 01:00 ·
ये जो गठरी सा बना तन वो सज के आयी थी
कितने अरमानो को हथेली पे सजा लाई थी
बड़ी सुंदर है कुंडली उसने मिलवाई थी
आज लपटों में घिरी ,,,काश वो चीखी तो होती
वो जलती रही लपटों में
चीखों के नुमाया कोई ना था
तमाशबीनो ने उतारी तस्वीरें
मगर उस खबर में आवाज ना थी
बड़ी जिल्लत से सोचा की सुपुर्द करू
एक रस्सी को गले से ज़रा पैबंद करू
मगर छत की ऊंचाई तक ज़रा नामुमकिन थी
अन्दर की आग को ही उसमे नजरबन्द करू
ये मेरे शब्द उतरती हुयी सीढ़ी की तरह
हरेक क़दमों की आहट बिना आवाज की है
मगर हालात ने कुछ सरगोशी की है
काश आवाज उसकी,,,सबको सुनायी देती
आज पिंजरे को बचाने में मरी मैना
करती भी क्या ...लोग उस पर हाथ साफ़ कर देते
बोलियाँ तो सरे आम सी हैं ,
कुछ तो अपनी थाली में सजा लेते हैं
आज इंसान ही इंसान को खा लेता है
बड़ा हिंसक है ये नजरों से घर पढ़ लेता है
कौन कितने बजे रुखसत हुआ और अकेला है कौन
लूट कर घर को खुला सा यूँ ही छोड़ देता है
(नारी और मैना )
खुद की तस्वीर ज़रा आईने में देखो तो
ये मशीनों के नगर और हम मशीनों से
इसमें दिल भी धड़क रहा है मशीनी सा
कहीं दस्तक नहीं ऐसी जो आँख पूरी खुले (हताशा)
कभी ऐसी भी आग जिसमे ना चिंगारी हो
खाली लपटों में घिरी इंधनो में नारी हो
काश !आवाज आग की वहाँ से आती हो
हवा का शोर और आग ही चिल्लाती ही\\
हर जगह काश और काश मगर सच सा ही
नहीं पूरा तो कुछ भी अधूरा सा ही
किसी ने छोड़ने की ख्वाहिशों में दम तोड़ा
काश ! इन मुट्ठियों से सांस का रस्ता रोका
ऐसी खबरें करो मशहूर हम मुनासिब है
पूछ तो लो जहां से रूठने की बात गाफिल हो
बिना आवाज चले गए कितने दुनिया से
प्रश्नों का सिलसिला ? काश आवाज सुनी होती उसकी
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