Sunday, 30 September 2012

सलाखें =जेल ..

सलाखें =जेल ..

by Suman Mishra on Thursday, 20 September 2012 at 21:34 ·



सलाखों की तपिश महसूस होती है
बचपन में खिड़की की सलाखों तक का सफ़र
युवा मन दायरे से नापता हुआ
मगर उम्र की अंतिम दहलीज जो इसके भीतर
जज्ब हो कर रह गयी है
सलाखों ने रोक रखा है,


समय की सलाखें  मजबूत होती  जाती है
मन की शक्ति जैसे इनमे समाहित होती जाती है
रोक लेती है उस पार जाने को ये सलाखें
बस येही रहो , हम हैं ना तुम्हारे साथ

प्रेम के कैदी सलाखों के पीछे
क्या मिला उन्हें प्रेम में खुद को डुबाकर
एक मिलन के लिए कितनो की जुदाई
जब सलाखों को मुट्ठी में जकड़ा
तभी अपनों से दूरी का एहसास हो गया

एक हद है इन सलाखों की जिसे जेल कहते है
मगर खुले रास्तों पर भी आसामा की ऊंचाई में भी
सलाखों का जाल बिछा हुआ है
इन्हें लांघना होगा अपने मेहनत के सिक्कों से
नहीं लांघ सके तो फिर सलाखों के पीछे


बड़ी मोटी मोटी सलाखें लगी थी
सभी तरह के इंसानों को बांधती हुयी
उनकी आँखें शरीर से बाहर निकलती हुयी
सबको माप लेने को आतुर थीं

कैसे आजादी मिलेगी इन्हें
रोशनी होकर भी मन में अन्धकार था
वो अन्धकार था उसके परिवार के कमरों सा
बूँद बूँद तेल या एक एक UNIT बिजली की बचत

इन मजबूरियों ने भले इंसान को दोषी बना डाला
और स्वेद और आवेग ने अपराधी घोषित कर दिया
कितनी कोशिश की थी की वो बच कर निकल जाएगा
मगर सूत्रों ने उसे सलाखों के पीछे कर दिया

ऐसे ही आवेग का ज्वार रोज ही इंसान झेलता है
बद्द-दुआओं को परिभाषित करता हुआ लोगों पर
मगर हिम्मत है की वहीं की वहीं उसे कुछ करने नहीं देती
उसे रोक देती है बस शब्द के साथ रहो कुछ मत करना
वरना तुम भी इन सलाखों के पीछे आ जाओगे ,,,,

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