परी कथाओं सी यादें , शूलों सी बन जाती हैं
by Suman Mishra on Sunday, 2 September 2012 at 12:04 ·
परी कथाओं सी यादें ,
क्यों शूलों सी बन जाती हैं ,
कुछ हलके फुल्के छन जैसे
संधानित सी हो जाती हैं
बस एक याद और शूल समीर
यूँ रोम रोम में बस जाए
हर सांस का आना दुर्लभ हो
जाने पर भी पाबंदी हो .
हर दिवस सूर्य का कुछ पल ही
रक्तिम स्पर्श दिखाती है
कुछ छन को जो गर भूलो तुम
फिर दिवस ज्वलित कर जाती है
कोई सौन्दर्य नहीं सुंदर
इसके पीछे ये काया है
वस्त्रों से आच्छादित कर देखो
या फिर बिन पोषण ये माया
कैसा होगा उसका हर दिन
जो समझ गया था उस पल को
कर विदा सभी को जाना था
शब्दों से हर मंथन उसका !!
स्पन्दन शब्दों में ढला हुआ
मैं उसको गढ़ कर देखूं जो
आकृति बनती बिगडती है
यादों के शूल से विन्धा हुआ,,,
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