चलो अभी बस मौन धरें हम, मन का कोलाहल शांत करें हम
by Suman Mishra on Friday, 7 September 2012 at 00:56 ·
चलो अभी बस मौन धरें हम
मन कोलाहल शांत करें हम
बहुत विकल मन गरल पान सा
अमिय अधर पर आज धरें हम
कोई अनुकृति नहीं तुम्हारी ,
कोई रूप रूबरू कैसा
कैसे मन ये आकृति खींचे
रंग तूलिका मन को झांसा
मन की एक तरंग को रोकें
भाव नहीं यूँ बहने पाए
कोई लहर पास आ छू ले
मन महीन सा विखर ना जाए
गाँठ लगा कर इसे रोक लूं
अधर सिले हों, नयन मूँद लूं
कुछ मौनीत शब्दों के गान से
उसके स्वर में खुद को रोप दूं
मौन है संचित कितना मन में
कितनी बातें जज्ब हो गयी
मगर एक लय उस पंछी की
मेरी आँखें सब्ज कर गयी
अन्धकार से लड़ता मानव
कितने दिवस निभा पायेगा
एक मधुर स्वर या हो क्रंदन
क्या उपहार वो ले जाएगा,
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