Sunday, 30 September 2012

पतिता

पतिता

by Suman Mishra on Saturday, 15 September 2012 at 00:23 ·



आह ! फिर "धिया"  जन्मी क्या  ब्यथा थी?
एक अंतराल के जन्मों की कथा थी वो ?
बस येही ना की जन्म तक अज्ञात थे सभी
एक पतिता का भाग्य या श्रधा से जनी थी

कुछ दिन माँ का आचल छुपा लेगी चेहरा
समय प्रवाह मय फिर वो बांधेगा सेहरा
कदम उल्लास मय , पिया की आस मय
लांघ देहरी गयी , पाकर चौखट नयी

खुशबू की बात हुयी, नया दिन रात नयी
तितली भौरे भूले, मन में बरसात हुयी
आज फागुन का रंग , कल था दीपों का संग
भूल बाबुल का घर, बात कुछ ख़ास हुयी

समय ने मात दिया, उसने ना साथ दिया
अब तो दीवारें हैं , पलकों ने बात कही
दूर तक भेदती हैं , रस्तों से पूछती है
डोली से लाया जो , क्या उससे मुलाक़ात हुयी ?


मन तम को वरन , रस्ता दुर्गम
अब चल दे तू, गह उसकी शरण
सब पार  , ये आँचल तार हुआ
हर स्वप्न ख़तम , नहीं सार हुआ

एक आस बची, हल्की हल्की
कितने पथिकों की ,पदचाप सूनी
पति की "पतिता" ये  नारी नहीं
लेखन विधना , सब उसकी कमी


वो रमता है , सब रूप लिए
पतिता अंजलि में अश्रु भरे
अब उसकी खोज पग छाले पड़े
बदली ना ज़रा , मन आस लिए..

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