मन का शिलालेख
by Suman Mishra on Thursday, 30 August 2012 at 18:10 ·
होंगे प्रस्तर के शिलालेख ,
पर मन का लेख कहाँ लिक्खा
सदीयों से बाँट रहा मानव ,
खुद की बातें बस शब्दों में
कितने पन्नो पर लिखा गया
जीवन का हर पल अंकित सा
कुछ बात रही मन की मन में
कुछ शब्द हवा में बिखर गया..
कुछ बने वेदना स्वर मंडित
कुछ सुर लहरी की तान बने
कुछ रास रंग की गाथा से
ऊंचे लोगों की शान बने
गाथा उसकी जो अमर हुआ
इतिहास वही जो बीत गया
पर सांस की बातें करनी है
हो शिलालेख लेख बस जीवन का
जीवन के बाद पहचान कहाँ
वो पकड़ नहीं सकता सांसें
स्वर के आलाप तो ऊचे थे
पर तार नहीं थे साजों में
अब तहरीरों की गाथा में
हमने बांधा है संयम को
कुछ नया नहीं बस पल ढलते
बन जाते हैं वो शिलालेख
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