Sunday 31 July 2011

नारी और अस्मिता

शब्दों के शब्दकोष मैं नारी बनी एक हार है,
है पुरुष ग्यानी वहां ,नारी बस एक उपहार है,
वो जिस तरह से चाहता उसको नचाता है वहाँ,
दुनिया जहान मे एक बस नारी नहीं अल्पहार है,

जिसने भी चाहा तोड़ कर बस ख़तम कर डाला इसे,
कहने को तो ये शक्ति है, सरे आम नचाया है इसे,
कितने हैं कोठे सज रहे, क्या पुरुष घुंघरू बांधते,
जाते हैं छुपकर सभी, अभिमान अपना साधते,

क्या जन सभी ? नारी बनी एक वस्तु है सबके लिए,
बच्चे लिए चाभी खिलौना, बड़ों की नारी बने,
ओ! देव पुरुषों क्यों यहाँ नारी का ये अपमान है,
करते नहीं कुछ मान तुम, नारी नहीं स्वाभिमान है.

जिससे जनित ये विश्व है, उसको सड़क मिलती यहाँ,
सब खेल खेलें अस्मिता से, सिक्कों की हुकूमत यहाँ,
कोई नहीं इस प्रथा को कर बंद नारी मुक्त हो.
स्वछंद हो ये उडे यूँ, सदियों से मुख को जो ढके.

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