Saturday 23 July 2011

BAANSURI AUR RADHEY


आज नाहीं दूँगी, इस बांसुरी को छूने तुम्हें,
बांसुरी बजाये रहे, मोको है भुलाए के,
दिन रात, होंठन से लाग लाग कारी भई,
लाल होंठ करो पिया, लाली को लगाय लेव,
फूल और पाती को स्वाद तो करावो जिह्वा,
...काहे दिन रात तुम बांसुरी बजाय रह्यो.

भरमाये सबको ई अपने तरंग मैं ऐसे,
जब इकी तरंग बांसुरी से प्रवाह कियो,
सब मतवारे नाच नाच भये हारे हियाँ,
कुम्हलाये फूल सारे रात मुसकाय दियो.

चलो अब छोड़ छाड़, बांसुरीं मिलैगो नाहीं,
हाथ हमरे पडी है, हाथ हम छुडाय लियो,
हाथ जाको छोड़ दियो, शक्ति नाही बची यामें,
तोसे तोडू संग मैं तो, जीवन विसराये लियो.

भाव मैं बसी हूँ तोरे, मोहे भरमावत हो ?
माया मैं तुम्हारी बनी ठगिनी बनाय दियो,
ठग हो जगत के तुम, माखन चोर बन गयो,
बांसुरी चुराऊं थारी, चोरनी बनाय दियो,

अरे ! ओ मुरारी हमसे ना रार फानो हियाँ,
बडे बडे आये हियाँ, कोहू पार नाहीं पाए,
पालक जगत के तो हमहूँ तो जानत हैं,
सखा हो हमारे तुम, सखी को रिझाय लियो.
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