Sunday 24 July 2011

TITLEE AUR JUGNU


तितली और जुगनू.........एक रंग  और दूसरा रोशनी
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एक रोशनी मैं फिरती ,उडती ,अपने रंगों को बिखराती
फूलों से खुशबू लेती हुयी, उसकी मिठास को पीती हुयी
उसके पराग को एक फूल से दूसरे फूल तक पहुचाती हुयी
कर्म का संवाहन करती हुयी, फूल से लेकर कुछ देती हुयी


कभी सोचती हूँ ,क्या फूल नहीं होंगे तो तितली नहीं होगी
फूलों की गति तो तितली और भौरों से ही है
भौंरे मुझे पसंद नहीं ,बहुत आवाज करते हैं
फूलों मैं खुशबू और मुस्कान, तितली की शांति
मुझे बहुत ही प्रिय है मगर फूर्ल हो चारों तरफ तभी
अगर  फूल ना हों तो क्या पीती होगी ये तितली
 
क्या फूलों से अलग भी इनका भोजन है
क्या फूलों के अलावा भी इनका भोजन है
फूलों से अलग  होकर भी इनका जीवन है ?
मगर क्यों क्या इनकी मजबूरी है ?????

और  ये जुगनू, जब रात को फूलों की शक्ल नहीं दिखती
ये अपनी जगमगाहट से फूलों की उपस्थिति का एहसास दिलाते है
रात को खुशबू का एहसास, क्यों ये रात को ही आते हैं
क्या रंगों से डर लगता है या शर्म आती है दिन की रोशनी मैं
अलहदा जीवन रोशनी और कालिमा का साथ
  
मैं सोचती हूँ. रंग और रोशनी मतलब तितली
रोशनी और अन्धेरा मतलब जुगनू
क्या इंसान जैसा ही कुछ कुछ मिलता है,रंग
रोशनी और अन्धेरा तीनों के बीच मैं इंसान
फिर भी सबकी अहमियत अपनी अपनी जगह
बस जीवन है येही क्या कम है जिसमें हम ये भेद करने मैं सछम हैं


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