Saturday 30 July 2011

"पत्ता और जीवन"


एक पतझड़ से क्या हुआ, कई बहारें अभी बाकी हैं,
झंझावत से गिरा ये पत्ता,हरे पत्तों की कहानी अभी बाकी हैं,
अब वो देख सकता है दुनिया की असली तस्वीर,
आगया वो हमारी नज़रों मैं, थोड़ी जिंदगी अभी बाकी है,
क्या हुआ ये दुनिया छूट गयी एक तूफ़ान के आने से,
थोडा ठहर के देख लें उनको, जिनका जीवन अभी बाकि है,
कोई गम नहीं इसको, हो गया अलग जो अपनी शाख से,
मचल रहे हैं जो शाखों पर, उनका गम अभी बाकी है.

No comments:

Post a Comment