Wednesday 27 July 2011

"कविता का मर्म क्या देश प्रेम"

 
 
 
क्यों दर्द लिखा, क्यों धर्म लिखा,
क्यों जन जन ब्यंजन दर्द भरा,
क्यों मन की व्यथा से मन तड़पा,
क्यों आंसू से है मन सींचा.
क्यों गीत नहीं है सुरभि युक्त,
क्यों मन गाता नहीं यछ गान,
क्यों तरुवर पाती नहीं यहाँ,
क्यों सुमधुर ध्वनि ना ध्वनित यहाँ,

क्यों रूप रूप श्रृंगार नहीं,
क्यों पायल, कंगन गीत नहीं,
क्यों देश धर्म सब त्रस्त यहाँ
क्यों मन का मन आह्लाद नहीं,
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जब आँख खुली कोहरा कोहरा,
सब पन्ने खून से रंगे हुए,,
उसने मारा, उसको रौंदा,
सब मनमौजी सा रहते हैं,

जिसकी लाठी उसकी है भैस,
हिम्मत है क्या छीनो देखें,
जब सत्य छुपा बस शब्दों मैं,
हम लेखन से इसको सींचें ??????

सुनता है कौन अब सत्य यहाँ,
सब पछ सबूत खरीद रहे,
क्या शब्द रंगे हम गढ़े हुए,
हम शिल्पी हैं पर झुके हुए,

तुम बात करो हम साथ साथ
बलिदानी बनकर क्या होगा,
है देश अभी जिन हाथों मैं,
अभिमानी बनकर क्या होगा.
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