Sunday 31 July 2011

आजादी या दासता


चलो आज फिर से आजाद हुए पांखी,
उडे हैं उडाये गए हैं आसमान मैं,
छुआ है हवा को उन्मुक्त खुले मन से,,
मिले हैं थे तडपे स्वछंद हैं ये पांखी,

...उडे हैं ना रुकते कहीं ठौर पर भी
हैं उडते धवल से . बने शान्ति अग्रिम ,
था जीवन बड़ा ही सरल सा पिंजरे मैं,
कोई कर्म ना था, बेकार था ये पांखी,

अभी उड़ चला ये, तो कोशिश करेगा,
खुद अपना और संगी का दम भरेगा,
मिलेगा जो मेह्नत से वही बाँट लेगा,
दिलों मैं जगह अब वो घटने ना देगा,

कभी एक इंसान से पूछो ये बातें,
कभी दास्ताँ थी ,बड़ी लम्बी रातें,
मगर कुछ तो बाकी अभी रह गया है,
मिली है आजादी, येही वाकया है,

कुछ रस्मों रिवाजो को हम पालते हैं,
सुरों मैं सभी आगाज ढालते हैं,
मगर अब भी बाकी, आजादी नहीं है,
उड़ा है गगन मैं,पंख बाकी एहीं हैं 
 

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