Friday, 29 July 2011

"निर्माण"

विषय गत बात तो तब होगी जब एक घरौंदा बन जाए,
छोटा ही सही पर सुंदर सा, उसमें रहने का सुख अनुपम,
पूँजी का संचय करे अभी ,फिर हम निर्माण की सोचेंगे
आगे का क्या जानू भैया , संचय प्रावधान का सोचेंगे.

निर्माण किया एक सपना भी ,पर वो अदृश्य सा रहता है,
जब जब आँखें बंद करू, एक दृश्य बना सा तिरता है,
ना मिटटी गारे की जरुअत, ना नीव है उसकी गहरे मैं,
बस स्वप्न रूप मैं साथ मेरे, निर्माण लक्छ्य का करता है.

अब सोचूँ वो जो पालक है, कैसे तो बनाया पूर्ण विश्व,
कैसे खींचा होगा खाका ,जल,थल और नभ का एक सदृश,
वो अभियंता क्या अजब गजब हम दावे करते रहते हैं,
वो कर जाता निर्माण सभी, हम दर्शक बन कद गिनते हैं,

निर्माण हो कुछ, निर्मित हो कुछ, कुछ भी हो बना सब इस जग का,
आदेश उसी का सर्वोपरि, वो ही पालक , जग अभियंता,
निर्माण करो इस जीवन का,दे दिया बनाकर जल,थल,नभ,
बनकर इंसान रहो इसपर, निर्माणित धरा , सब हमसब का,

1 comment:

  1. जर्जर मका की तरह आज फिर
    मुझे बदलना ही होगा अपना स्वरूप
    टूटे दरवाजो की जगह आज मेहराब
    सीढिया मजबूत इस्पात की और
    उंचाई आसमान की देखो तो ज़रा
    मुझे पता है की खंडहर बताएंगे की
    इमारत बुलंद होगी ---------?
    ..

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