Monday 25 July 2011

DOSTI BANAAM ANTARDWAND


 




चलो कुछ बात और करते है, मलाल जो भी परे रखते हैं,
खोल दो गाँठ उस मलाल की अब, हवा मैं उड़के बात करते हैं.
कशिश को हवा दो की पास रहे,खलिश को दूर भेज देते हैं,
बहुत हुआ की अब नहीं सहना, दूरियां पास में बुलाते हैं.

कभी उसने कोई शह दे दी थी, मात हम बेरुखी को देते हैं,
जिदगी है तलब उसकी खातिर, सारे इलज़ाम हमही लेते है,
माना हम बेखुदी में हैं ज़िंदा, उसकी साँसों में बसे होते हैं,
चलो अछा हुआ की शुरू किया, उसकी यादों में ही खुश होते हैं.

कभी हाथों में हाथ होते थे, एक निवाला कुछ ग्रास होते थे,
दोस्ती कर तो ली थी मैने ही, एक ही पल में दोस्त खोते हैं,
अपनी सांसे उधार मांगी हैं, दिन हो थोड़ा पर रात मांगी है,
काश जब आँख बंद हो मेरी, ख्वाब उसके ही हम संजोते हैं.

चलो अछा हुआ की वो तनहा, उसके तन्हाई मेरी यादें हैं,
दूरिया एक पल में कट जाएँ,उसका आगोश मेरी बाहें हैं,
बहुत ही खुशगवार है मौसम, चंद बातें बही भी याद मुझे,
उसे भी याद मेरी आती रहे,आज उससे मेरी फरियादें हैं.




2 comments:

  1. बात पहले काव्य भाव की -----मुझे लगता है आज प्रासंगिक है भाव को साफ़ उकेरना तन्हाई और संत्रास को साथ साथ परिभाषित करना गंभीर काम है कई अनुभूतियो को एक साथ जीना फिर उसे भाषित करना कमाल है --जिसमे तुम को महारथ हासिल है -----काव्य सोंदर्य के रूप की बात की जाए तो आकार विराट लगता है -------अनुशाशित अनुभूति प्रतीत होती है --प्रभाव उत्पादन की सीमा लम्बी और गहरी है ------अनुभूति को जीने पर लगता है हम रेत को मुट्ठी में पकड़ने का प्रयास कर रहे है ---विचार फिसलते जाते है ---और एक झुझुरी स्पंदन को पास पाते है ---दीवार पर नाखुनो को रगड़ना और फिर जो एहसास निकलता है ये गहराई को बिम्बित करती है -----मुझे तुम्हारा लेखन पसंद है प्रिय सुमन ----नई विधा को बना रही हो जो गीत और अगीत विधा के बीच का है---------जब भाव विचारों से आत्म सात करते है तो उत्तम काव्य निकलता है ---तुम आसानी से वो कह जाती हो जिसकी व्यंजना समय लेती है -------हम आंदोलित होते है --बस स्तब्ध देखते रहते है ---भाव और विचारों का संगम ---बहुत खूब ---लिखती रहो ----हम पढ़ते रहेंगे ---एक ना समाप्त होने वाला पल ---...

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  2. थैंक्स सर, आपका आशीर्वाद बहुत बहुत मूल्यवान है आभार सर

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