Saturday 23 July 2011

KAA KAROON SAJNI AAYE NAA BAALAM


कभी श्री K.P,सक्सेना जी द्वारा हास्य/व्यंग्य सुना था...आज उसी पर लिखने को मन हुवा मेरा...छोटा और बचकाना सा प्रयोग. .+++++++++++++++++++++++++++++​++++++++++++++++++++

"का करू सजनी आये ना बालम"
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विरह मैं डूबी विरहनी करत पीया की आस,
...मैं का बोलूँ जिया को, तलफत मीन ज्यों प्यास,
मुख पे लाली ना रही, ना सोहत कछु एक रंग,
नैनन जोहत बाट है, मन बन गयो पतंग,
मन बन गयो पतंग , उड़त है हरदम संघे,
नाहीं कौनो खबर पिया तुम समझो हिय को.
(का करू सजनी आये ना बालम )

बहुत दिनों से रुखी सी वो काम वाली,
पहले तो फ़िल्मी गाने गाती रहती थी,
टीवी पर सलमान की देखते ही खुद
को तारिका समझ कर सवारने लगती थी,
पति ने धोखा दिया, चला गया छोड़ कर,
बाट देख कर अब वो अधिक श्रम करती है.
(का करू सजनी आये ना बालम )

माँ से उसने फीस मांगी थी स्कूल की,
माँ ने पल्लू के गाँठ से दिया ,
पर उस दिन टिफिन खाली था,
दोस्तों ने कहकहे लगाकर पेट भरा,
पर उसकी आँखें घर के चूल्हे की आग तलाशती थी,
कहीं काम करने का कारण पूछा तो
(का करू सजनी आये ना बालम)

इश्वर की प्रतिमा और अश्रु से फ़रियाद,
शायद किसी चमत्कार की आशा,
वरद-हस्त को महसूस करता मन,
सुदर्शन चक्र से दमन होता शत्रु,
"पर अभिमन्यु की तरह जीवन -रन छेत्र मैं लड़ता हुआ,"
(का करू सजनी आये ना बालम )
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